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    कभी हंडे की रोशनी में बैलगाड़ी पर निकलती थी रामबारात:आगरा में 1877 में शुरू हुआ था रामलीला का मंचन, लगभग 100 साल से निकाली जा रही है रामबारात

    2 hours ago

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    आगरा की रामबारात न सिर्फ एतिहासिक है बल्कि उत्तर भारत की सर्वेश्रेष्ठ मानी जाती है। चकाचौंध करने वाली धार्मिंक-सांस्कृतिक झांकियां, बैंड की धुन पर थिरकते श्रद्धालु। मगर, लगभग 100 साल पहले आगरा की रामबारात का ऐसा स्वरूप नहीं था। न रोशन की व्यवस्था थी और न ही आकर्षक झांकियां। ऐसे में शुरुआत में रामबारात हंडे की रोशनी में बैलगाड़ी पर निकलती थी। मगर, समय के साथ इसमें बदलाव आता गया। आगरा में रामलीला का मंचन 1877 में शुरू हुआ था। जानते हैं पूर्व का इतिहास... आगरा में उत्तर भारत की प्रसिद्ध रामबारात की शुरुआत लगभग 100 साल पहले हुई थी। धौलपुर के राजा रामबारात में हाथी व चांदी का हौदा, शाही बैंड भेजा करते थे। शहर के व्यापारी रामबारात के साथ बैलगाड़ियों में बैठकर चलते और सूखे मेवे, बर्तन, फल बांटते थे। बरात लालटेन व हंडों की रोशनी में निकाली जाती थी। तीन पीढ़ियां जुड़ीं रामलीला से पुराने शहर में निकाली जाने वाली रामबारात का रूट पहली रामबारात के समान ही है। श्री रामलीला कमेटी के महामंत्री राजीव अग्रवाल की तीन पीढ़ियां आयोजन से जुड़ी रही हैं। उन्होंने बताया कि 70 के दशक तक रामबारात शाम 5-6 बजे प्रारंभ हो जाया करती थी। रामबारात में ही जनकपुरी में पहुंचती और सवेरे तक रस्में चलती रहती थीं। श्रीराम और लक्ष्मण के स्वरूप हाथी पर बैठकर निकलते थे। धौलपुर के राजा भिजवाते थे हाथी उन्होंने बताया कि वर्ष 1947 के बाद तक धौलपुर के महाराजा हर साल राम बारात के लिए हाथी, चांदी का हौदा, जिस पर श्रीरामचंद्र जी बैठकर निकलते थे और अपना शाही बैंड बाजा भेजा करते थे। बारात में सबसे आगे एक छोटे से गोल रथ में एक बहुत बड़ा पीला झंडा चलता था जिस पर लिखा रहता था श्री रामचंद्राय नम:। एक बार रामबारात पर हुआ था हमला राजीव अग्रवाल ने बताया कि उनके परदादा लाला कोकामल 50 वर्ष तक कमेटी के महामंत्री रहे। एक बार आपराधिक तत्वों ने रामबारात पर हमला किया तो बैंड और ढोल-ताशे वाले भाग निकले। लाला कोकामल व अन्य पदाधिकारियों ने बैंड और ढोल-ताशे खुद बजाते हुए बरात को जनकपुरी तक पहुंचाया। 12 मंडी के अखाड़े करते थे कला का प्रदर्शन बरात में 12 मंडियों के अखाड़े शामिल होते थे। इनमें बनैठी, तलवार, लाठी लेकर उस्तादों के साथ 40-50 युवाओं की टोलियां ढोल की थाप पर करतब करते चलती थीं। उस्तादों में एक-दूसरे से बढ़कर अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने की होड़ होती थी। आग वगैरह के करतब करने वाले भी साथ चलते थे। रथों के साथ डंडे खेलने वाले होते थे। जैसे-जैसे समय बदला आधुनिकता के युग में रामबारात से लोग जुड़ते गए। इस साल राम बरात में 12 बैंड अपनी धुनों से लोगों को नाचने और थिरकने को मजबूर करते हैं तो 125 से अधिक झांकियां भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। पहले हाथियों पर बैठते थे स्वरूप सन 2011 में हाथियों के रामबारात में शामिल करने पर प्रतिबंध लगा तो राम बरात रथ पर निकलने लगी। ये रथ बेहद आकर्षक होते हैं. रामबारात को लेकर राजा जनक और राजा दशरथ की अलग-अलग व्यवस्था रहती है। रामबारात और जनकपुरी देखने के लिए आगरा के साथ ही आसपास के जिलों से भी लोग आते हैं। तीन साल नहीं निकली रामबारात सन् 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय पहली बार रामबारात नहीं निकली थी। इसके बाद 2020 और 2021 में कोरोना महामारी के चलते रामलीला व रामबारात का आयोजन नहीं हुआ था। ये रहता है रामबारात का रूट रामबारात के रूट में कोई बदलाव नहीं किया गया है। श्रीरामलीला कमेटी के मीडिया प्रभारी राहुल गौतम ने बताया कि लगभग 100 साल पहले जिस रूट से रामबारात निकलती थी, वही रूट आज भी है। लाला चन्नोमल की बारादरी (गली मन: कामेश्वर) से प्रारंभ होकर यह रामबारात रावतपाड़ा, जौहरी बाजार, सुभाष बाजार, लाला कोकामल मार्ग, छत्ता बाजार, कचहरी घाट, बेलनगंज, पथवारी, धूलियागंज, सिटी स्टेशन रोड, घटिया छिलीईट, फुलट्टी बाजार, सेब का बाजार, किनारी बाजार, कसरेट बाजार होती हुई रावतपाड़ा पहुंच कर समापन। उसके बाद वहां से पुन: जनकपुरी के लिए यह रामबारात प्रस्थान करती है
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