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    निशांची के लिए सुशांत मेरी पहली पसंद थे:अनुराग कश्यप बोले- उसने पहले हां कहा फिर गायब हुआ; बाल ठाकरे के पोते ऐश्वर्य बने हीरो

    2 hours ago

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    डायरेक्टर अनुराग कश्यप नए चेहरों के साथ फिल्म ‘निशांची’ लेकर आ रहे हैं। कनपुरिया टच वाली इस फिल्म के जरिए बालासाहेब ठाकरे के पोते ऐश्वर्या ठाकरे अपना डेब्यू कर रहे हैं। फिल्म में उनके अपोजिट वेदिका पिंटो नजर आएंगी। ट्रेलर रिलीज के बाद दोनों की एक्टिंग, फिल्म के गाने और कहानी की खूब चर्चा हो रही है। 'निशांची' के लिए अनुराग की पहली पसंद दिवंगत एक्टर सुशांत सिंह राजपूत थे। अनुराग ने फिल्म, एक्टर और नए टैलेंट को लेकर दैनिक भास्कर से खास बातचीत की है। ‘निशांची’ का ट्रेलर लोगों को बहुत पसंद आ रहा है। हर जगह इसके बारे में बात हो रही है। कैसा फील हो रहा है? मैं तो बहुत अच्छा फील कर रहा हूं। हम लोगों ने कानपुर-लखनऊ की असली फिल्म बनाई है। आशा करता हूं कि ये लोगों तक भी इसी मजे और असलियत के साथ पहुंचे। वासेपुर के बाद मिर्जापुर आया तो लोगों का लगा लोग उधर ऐसे ही हैं। मिर्जापुर सीरीज में मिर्जापुर कम था। मैं मिर्जापुर से हूं। सीरीज में जैसा दिखाया गया है, वैसा है ही नहीं। लेकिन वो सक्सेसफुल सीरीज है। वासेपुर की वजह से लोगों को लगता है कि गालियों का ईजाद मैंने किया है। मेरे सिर पर ये भी भार था। मैं उत्तर प्रदेश में पला-बढ़ा हूं और वहां के कई रंग हैं। इस राज्य में कदम-कदम पर रंग बदलते रहते हैं। सोनभद्र का रंग अलग है, बनारस का रंग अलग है। लखनऊ-कानपुर का रंग अलग है। लखनऊ की तहजीब अलग है और कानपुर का रंग एकदम ही अलग है। कनपुरिया बकैती और एटिट्यूड बिल्कुल अलग है। कानपुर की बकैती कमाल की है इसलिए हमने फिल्म का सेटअप वहां रखा है। ‘निशांची’ में बकैती है। ये फिल्म बकैती वाली है लेकिन इसमें एक बेहद संवेदनशील कहानी भी है। ये गैंगस्टर वाली फिल्म नहीं है बल्कि एक परिवार की कहानी है। एक मां-बाप और उनके बच्चों की कहानी है। दो भाई और उनके बीच एक लड़की की प्रेम की कहानी है। ये फिल्म दोस्ती और दोस्ती में आई दरार की कहानी है। जैसे ‘दीवार’ और ‘त्रिशूल’ गैंगस्टर नहीं बल्कि परिवार की कहानी थी। ठीक, वैसे ही निशांची है। ये अपराध और सजा की कहानी है। बचपन में मैंने जितना सलीम-जावेद घोंटा है, उसको मैंने निशांची में उडेला है। इस फिल्म की कहानी आपके पास 2016 से थी, फिर इसे बनाने में इतना टाइम क्यों लगा? इतना टाइम इसलिए लगा क्योंकि मैं सही तरीके से फिल्म बनाना चाहता था। मैं डेस्पेरेशन में फिल्म नहीं बनाना चाहता था। मुझे नॉर्थ इंडियन एक्टर चाहिए था। एक समय पर मैं निशांची को सुशांत सिंह राजपूत के साथ बनाना चाह रहा था। सुशांत के पास जो भी रीजन रहा हो, उसने इस फिल्म को नहीं किया। पहले उसने फिल्म को हां कहां फिर गायब हो गए। बाद में उन्होंने कुछ रिएक्शन ही नहीं दिया। फिल्म बनने से रह गई। मैं काफी दिन तक इस फिल्म के लिए एक्टर ढूंढता रहा। फिर एक दिन मैंने ऐश्वर्य का ऑनलाइन एक वीडियो देखा, जिसमें उसने अलग-अलग किरदार के मोनोलॉग किया था। उनमें से एक मोनोलॉग 'शूल' फिल्म का था। उसे देखने का बाद मुझे लगा कि ये तो निशांची के लिए परफेक्ट है। जब मैं मिला तो मैंने देखा कि वो बहुत शांत किस्म का लड़का है। लेकिन जब वो दूसरों की नकल करता है, तो कमाल करता है। मैंने उस स्क्रिप्ट दी और उसका रिएक्शन जानना चाहा। स्क्रिप्ट पढ़कर वो काफी उत्साहित था। मैंने उससे कहा कि अगर ये फिल्म करोगे तो कुछ और नहीं करना होगा। तुम्हें थोड़ा कनपुरिया बनना पड़ेगा। ऐश्वर्य ने इस फिल्म को अपनी लाइफ के पांच साल दिए हैं। क्या ऐसे टैलेंट मुश्किल से मिलते हैं, जो एक प्रोजेक्ट के लिए अपना सब कुछ देने के लिए तैयार हो? ऐसा नहीं है कि नहीं मिलते। ऐसे लोग इंडस्ट्री में मिलते नहीं लेकिन बाहर वालों को भी बहुत जल्दी होती है। दिक्कत ये होती है कि अगर वो काम नहीं करेंगे तो उनका जीवन यापन कैसे चलेगा। जैसे मुक्केबाज की तैयारी के लिए विनीत कुमार ने एक साल के लिए अपना सब कुछ बेच दिया था। मेरी भी फाइनेंशियली हेल्प करने की एक लिमिट है। 'मुक्केबाज' में प्रोड्यूसर था तो मैं फाइनेंशियली हेल्प कर सकता था। लेकिन इस फिल्म के लिए कोई प्रोड्यूसर नहीं था। ऐसे में मेरे साथ दिक्कत होती है। एक्टर्स से इतने सारे अच्छे हैं। मैंने एक दूसरी फिल्म बनाई, उसमें 110 एक्टर्स हैं। 80-90 तो उसमें सिर्फ थिएटर एक्टर्स थे, जो बस इसलिए आए थे क्योंकि मैं फिल्म कर रहा था। सबके अंदर भूख है। हर वो आदमी अपना सब कुछ देने को तैयार है। जब आप ऐश्वर्य ठाकरे से पहली बार मिले, तब आपको पता था कि ये राजनीतिक घराने से आते हैं? नहीं, पहली बार नहीं मालूम था। लेकिन बाद में पता चल गया। क्या है कि मैं जब किसी से कमिटमेंट चाहता हूं तो उनकी फैमिली से मिलता हूं। मैंने शुरू में जब उससे कहा कि देखो तुम एक्टर बनना चाहता हो और मुझे तीन-चार साल का कमिटमेंट चाहिए। मुझे तुम्हारी फैमिली से मिलना पड़ेगा। तब उसने खुद अपनी फैमिली के बारे में बताया। मैं पहली बार उसकी मां से मिला। मैंने उनसे कहा कि अगर मुझ पर भरोसा है तो अपने बेटे को मुझे सौंप दीजिए। वो भी उसके लिए उस समय दो-तीन ऑप्शन देख रही थी लेकिन मुझ पर भरोसा दिखाया। फिर जब मैं वेदिका से मिला तो यही बात मैंने उसके पेरेंट्स से भी कहा। मैंने उनसे कहा कि ये फिल्म मेरे लिए बहुत खास है और तैयारी के लिए मुझे समय लगेगा। उस समय तक वेदिका एक-दो फिल्म कर चुकी थी। मैंने कहा कि मैं नहीं चाहूंगा कि इस दौरान ये कुछ और करे। तब क्या आप जानते थे कि ऐश्वर्या ठाकरे कमाल के म्यूजिक कंपोजर भी हैं? हां, मुझे मालूम था। मैं जानता था कि म्यूजिक इसका पैशन है। म्यूजिक में मैंने इसकी ग्रोथ देखी है। फिल्म का गाना पिजन कबूतर उसने लिखा और कंपोज किया है। जब फिल्म एडिट पर थी, तब हम लोग ढूंढ रहे थे कि किसी तरह का स्कोर होना चाहिए। ऐश्वर्या ने रातों-रात गाना बना दिया। जब मैंने सुना मैं हैरान रह गया। मेरा रिएक्शन था कि ये कहां से आया। उसने बताया कि ये एक सीन से निकला हुआ गाना है। मैंने उससे कहा कि ये तो कमाल गाना है। फिर हमें इस गाने के लिए सही आवाज चाहिए थी। हमने सिंगर भूपेश सिंह की आवाज ली। भूपेश वही सिंगर हैं, जिसने वासेपुर में यशपाल शर्मा के लिए गाया था। ऐश्वर्या ने खुद भी फिल्म में दूसरे गाने गाए हैं। आपकी फिल्मों का म्यूजिक भी काफी यूनिक होता है। आप आर्टिस्ट को पूरी आजादी देते हो। हां, मैं सबको एकदम फ्री छोड़ देता हूं। मैं सबके साथ स्क्रिप्ट शेयर कर देता हूं और उनसे पूछता हूं कि आप बताओ क्या करना है। हर म्यूजिक डायरेक्टर सिचुएशन के हिसाब से अपना म्यूजिक खुद लेकर आया। डियर कंट्री गाने को बिरहा सिंगर विजय यादव और प्यारेलाल यादव ने जबरदस्त गाया है। इस गाने को लिखा भी उन्होंने ने ही है। इसका म्यूजिक ध्रुव घाणेकर ने दिया है। इन लोगों ने मिलकर मैजिक क्रिएट किया है। इस गाने ने फिल्म का मूड सेट किया। इस गाने में हिंदी, इंग्लिश, फ्रेंच, भोजपुरी सबकुछ मिक्स है। फिल्म में अलग-अलग म्यूजिक डायरेक्टर अलग-अलग फ्लेवर लेकर आए हैं। आपने इस फिल्म के जरिए कमर्शियल सिनेमा और इंडी सिनेमा के बीच की दीवार गिरा दी है। निशांची में कमर्शियल फैक्टर भी है और इंडिपेंडेंट सिनेमा का भी टच है। ये कैसे किया? मुझे लगता है कि एक फिल्ममेकर में कहानी के प्रति ईमानदारी होनी चाहिए। अगर कहानी सर्वोपरि है तो मेरी ईमानदारी कहानी के प्रति होनी चाहिए। कौन सी कहानी कैसे कही जानी चाहिए, ये कहानी तय करेगी। अगर मैं हर कहानी एक ही तरह से कहूंगा या अपने तरीके में फिट करने वाली कहानी ढूंढूंगा तो मेरी फिर कोई ग्रोथ ही नहीं है। ऐसे में मैं बोनसाई होकर रह जाऊंगा। मुझे अपनी जड़ें बढ़ानी है। मुझे बरगद बनना है और इसके लिए बहुत सारी चीजें करनी होती हैं। अलग-अलग कहानियों को अलग-अलग तरीके से कही जानी चाहिए। इसका अपना एक अलग मजा होता है। इस फिल्म को बनाने की वजह वो नहीं है, जिसकी वजह से मैंने कैनेडी बनाई या कोई और फिल्म बनाई।
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