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    हिंदू महिला को मुस्लिम युवक ने दी मुखाग्नि:बोले- त्रिवेणी में विसर्जित करूंगा अस्थियां, मिसाल बना मां-बेटे का रिश्ता

    5 hours ago

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    मेरे लिए सब कुछ खत्म हो गया है। मां के बिना अब लावारिस और बिल्कुल अकेला हो गया हूं। मैं मेरा दुख किसी को सुना नहीं सकता। दुआ है मुझे हर जन्म ऐसी ही मां मिले । भीलवाड़ा के गांधीनगर इलाके के जंगी मोहल्ले में मणिहारी आइटम की छोटी से दुकान चलाने वाले 42 साल के असगर अली ने मिसाल कायम की है। पड़ोस में किराए पर रहने वाली 67 साल की अकेली महिला शांति देवी को असगर ने कहने के लिए मां नहीं कहा। उनकी मौत के बाद बेटे का फर्ज भी निभाया। अर्थी को कांधा दिया। मुखाग्नि दी। सारे संस्कार पूरे किए। असगर के लिए शांति देवी पड़ोसी नहीं, बल्कि मां से बढ़कर थीं। शांति ने भी जीवनभर असगर अली पर खूब ममता लुटाई। कई साल के साथ ने दोनों को मां-बेटे के रिश्ते में बांध दिया। शांति देवी का निधन हुआ। असगर ने मुखाग्नि दी। भरी आंखों से कहा- जिस मां ने एक रोटी भी हाथ से खिलाई हो, उसका कर्ज कोई चुका सकता है क्या? सबसे पहले ये 3 तस्वीरें देखिए.. 30 साल पहले मिले थे दो परिवार असगर अली ने बताया- शांति देवी और उनके पति मेलों में छोटी-मोटी दुकान लगाया करते थे। मेरे माता-पिता भी यही काम करते थे। 30 साल से दोनों परिवार एक-दूसरे को जानते थे। मेरी मां और शांति देवी के बीच अच्छा रिश्ता बन गया। मैं बहुत छोटा था। तभी से शांति देवी का मासी मां कहा करता था। हम लोग एक ही मोहल्ले में अलग-अलग मकानों में रहते थे। पति की मौत के बाद मासी मां साल 2010 में अपने बेटे को लेकर जंगी मोहल्ले की गली में सलीम कुरैशी के मकान में किराए पर रहने आ गईं, जहां ऊपर के पोर्शन में हम किराए पर रहते थे। मासी मां नीचे के पोर्शन में रहने लगीं। दोनों परिवारों में सुख-दुख आपस में बंटने लगे। मासी मां मेरा बहुत ख्याल रखती थीं। मां जैसा प्यार देतीं। दिन में कई बार आकर पूछतीं कि मैंने कुछ खाया या नहीं। तबीयत कैसी है। पिता का निधन हुआ तो शांति देवी ने अम्मी को हिम्मत दी साल 2017 में मेरे पिता का निधन हो गया। उस वक्त मासी मां ने मेरी अम्मी का खूब साथ दिया। 2018 में मासी मां के जवान बेटे का निधन हो गया। उसे किसी जानवर ने काट लिया था। संक्रमण से उसकी मौत हुई तो मासी मां अकेली हो गईं। मेरी शादी हुई। मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ रह रहा था। घर में मां थीं और मासी मां भी थीं। दोनों का प्यार मिला। मां से ज्यादा मासी मां ने मुझे प्यार दिया। कोरोना के पहले फेज में मासी मां की तबीयत खराब हुई। मैं उन्हें जांच के लिए महात्मा गांधी हॉस्पिटल ले गया। वहां पर्ची को लेकर स्टाफ से मेरा झगड़ा हो गया। गार्ड से भी हाथापाई हुई। मैं मासी मां को घर ले आया। बोला- मां तेरी सेवा मैं घर पर ही करूंगा। घर पर ही हमने उनकी देखभाल की। दवाएं दीं और वे स्वस्थ हो गईं। दो साल पहले मेरी अम्मी चल बसीं। मेरे सिर से मां-बाप का साया उठ गया। लेकिन मासी मां ने मुझे मां की कमी बिल्कुल महसूस नहीं होने दी। घर पर वे कुछ भी बनाती तो मेरे लिए लेकर आतीं। वे मुझसे पूछतीं- बेटा खाने में क्या बनाऊं? मुझे पापड़, नमकीन सेव और ग्वार की फली की सब्जी पसंद थी। अक्सर वे प्यार से बनाकर लातीं और खिलाती थीं। सर्दियों में मेरे नहाने का पानी गर्म करतीं। कपड़े धोतीं। मैं काम से लौटता तो प्यार से कहतीं- मेरा बेटा आ गया। मेरी पत्नी ने भी मेरे खाने-पीने का इतना ध्यान नहीं रखा होगी जितना मासी मां ने रखा। कभी बीमार होता तो खिचड़ी-दलिया बना लातीं। मुझे दवा लेने के लिए कहतीं। उनकी बहुत सी बातें हैं जो याद आती हैं तो आंखें भर जाती हैं। मेरे लिए तो सब कुछ खत्म हो गया। मां के बिना लावारिस हो गया हूं। अपना दुख किसी को सुना नहीं सकता। मैंने जो कुछ किया वो बेटे के फर्ज से ज्यादा कुछ नहीं। काम पर जाते वक्त और लौटकर बात करता था मैं भी काम पर जाते वक्त उन्हें बताकर जाता। उनकी जरूरत और तबीयत के बारे में पूछता। काम से लौटकर आता तो उनके पास बैठता। बातें करता। उनके सम्मान में मैंने अपने घर में नॉनवेज बनाना और खाना बंद कर दिया। ईद और दीपावली भी हम साथ-साथ खुशी से मनाया करते थे। मैंने उनके पेट से जन्म नहीं लिया लेकिन उनकी मोहब्बत मां जैसी ही थी, बल्कि मेरी मां से बढ़कर थी। कुछ वक्त पहले मैंने नए काम के लिए ई-रिक्शा खरीदा। जब मासी मां को पता चला तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैं उनके लिए नारियल, मिठाई और साड़ी लेकर पहुंचा तो उनकी आंखें भर आईं। मेरा माथा चूमकर बोली-तू खूब तरक्की करेगा। सुकून है- आखिरी वक्त बेटे की तरह सेवा की काफी समय से वे बीमार चल रही थीं। मैंने बेटे की तरह सारे फर्ज निभाए। उनके भोजन और दवाओं का पूरा ध्यान रखा। सभी ने बहुत साथ दिया। यहां तक कि मकान मालिक सलीम भाई भी कई महीनों तक किराए के बारे में नहीं पूछते थे। मासी मां के रूम का किराया 1500 रुपए था। सलीम भाई मासी मां की और मेरी आर्थिक स्थिति को समझते थे। वे महीनों तक किराए के लिए नहीं टोकते थे। मासी मां के गुजरने पर पूरा मोहल्ला रो पड़ा। दुआ करूंगा- ऐसी ही मां हर जन्म में मिले असगर अली ने बताया- मुखाग्नि देने के बाद मैंने श्मशान से अस्थियां चुनीं। उनके कमरे में धूप-बत्ती की। भीलवाड़ा में ही त्रिवेणी संगम पर अस्थियों का विधि-विधान से विसर्जन करूंगा। वहां भी मैं यही दुआ करूंगा कि मां आगे मुझसे जहां भी मिलो मां के रूप में ही मिलना। रीति रिवाज अलग हुए क्या? वो मां थी। इतना काफी है। उन्हें मां माना तो हर कर्म पूरे करना मेरा फर्ज है। हिंदू या मुस्लिम दोनों को ऊपर जाना है। सिर्फ मोहब्बत साथ जानी है। --- हिंदू-मुस्लिम भाईचारे की मिसाल की यह खबर भी पढ़िए... हिंदू महिला का अंतिम संस्कार मुसलमान बेटे ने किया:भीलवाड़ा में अंतिम यात्रा में कंधा देने शामिल हुए मुस्लिम युवा,अब अस्थि विसर्जन भी करेंगे भीलवाड़ा में रविवार को 67 साल की हिंदू महिला की मौत हो गई। उनके परिवार में अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था। ऐसे में उन्हें मां की तरह मानने वाले मुस्लिम युवा ने अंतिम संस्कार किया। (पढ़ें पूरी खबर)
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