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    खून से सना है भरतपुर पूर्व राजपरिवार का झंडा विवाद:40 साल पहले राजा का पुलिस एनकाउंटर, 77 साल पहले जाना पड़ा तिहाड़ जेल

    3 hours ago

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    भरतपुर के पूर्व राजपरिवार में मोतीमहल पर रियासत कालीन झंडा लगाने को लेकर विवाद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। अनिरुद्ध सिंह की तरफ से तिरंगा लगाने, उनके पिता व पूर्व कैबिनेट मंत्री विश्वेन्द्र सिंह और उनके समर्थकों के आंदोलन वापस लेने के बाद भी महौल ठीक नहीं है। पूर्व राजपरिवार के पैतृक गांव डीग के सिनसिनी के रहने वाले युवक मनुदेव सिनसिनी ने अपने 2 साथियों के साथ मिलकर 21 सितंबर की देर रात अपनी कार से मोती महल का गेट तोड़ दिया। इसके बाद परिसर में घुस कर मोती महल में रियासतकालीन झंडा लगाने का प्रयास भी किया। इस दौरान सारा घटनाक्रम फेसबुक पर लाइव किया गया। इसके बाद जैसे ही गार्ड वहां पर पहुंचे, तभी तीनों अपनी गाड़ी वहीं छोड़कर भाग गए। भरतपुर पूर्व राजपरिवार में झंडे को लेकर विवाद नया नहीं है। पहले भी दो बार विवाद हो चुका है। एक बार तिरंगा फहराने के लिए भारतीय सेना को टैंक लेकर भरतपुर आना पड़ा था। तत्कालीन राजा को गिरफ्तार कर जेल भेजना पड़ा था। दूसरी बार झंडे को लेकर हुए विवाद के बाद राजा ने तत्कालीन सीएम के हेलिकॉप्टर को जीप से टक्कर मार दी थी। इसके बाद पुलिस ने राजा का एनकाउंटर कर दिया था। पढ़िए पूरी रिपोर्ट ..... पहला किस्सा : राजा को जाना पड़ा था तिहाड़ जेल भरतपुर में पहली बार लगी धारा 144 भरतपुर के महाराजा किशन सिंह की मौत के बाद साल 1939 में उनके सबसे बड़े बेटे बृजेंद्र सिंह गद्दी पर बैठे। उनके तीन छोटे भाई गिरेंद्रराज सिंह, मानसिंह और गिरिराज शरण सिंह थे। ‘भरतपुर का इतिहास और भरतपुर का स्वातंत्र्य संग्राम’ किताब के अनुसार, 28 फरवरी, 1948 को भरतपुर, अलवर, धौलपुर और करौली के मत्स्य संघ में विलय (एकीकरण) की घोषणा की गई। अलवर को मत्स्य संघ की राजधानी बनाया जाना था। इस घोषणा का भरतपुर रियासत में विरोध हुआ। विलय के विरोध में आंदोलन होने लगे। शहर में 15 मार्च, 1948 को निषेधाज्ञा लागू कर दी गई। 15 मार्च 1948 को ही सरदार पटेल हवाई जहाज से अलवर आए थे। उन्होंने जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था- अगर किसी को लगता है कि भारत सरकार कमजोर है और वे उसे डराकर स्वतंत्र राज्य बना लेंगे तो मैं उन्हें चेतावनी देता हूं कि हम दुनिया के किसी भी राष्ट्र का मुकाबला करने में सक्षम हैं। इसी चेतावनी का असर था कि दो दिन बाद ही अलवर, भरतपुर, धौलपुर और करौली ने संयुक्त राज्य मत्स्य (यूनाइटेड स्टेट ऑफ मत्स्य) का गठन कर भारत संघ में विलय स्वीकार कर लिया था। भारतीय सेना की मद्रास रेजिमेंट ने भरतपुर को घेरा 18 मार्च,1948 को मत्स्य राज्य का उद्घाटन समारोह होना था। तय किया गया कि उद्घाटन भरतपुर में होगा और रियासतकालीन ध्वज उतारा जाएगा। विद्रोह की आशंका को देखते हुए भारत सरकार ने फौज की मद्रास रेजिमेंट भरतपुर भेज दी। फौज ने भरतपुर, डीग और कुम्हेर में जीप और टैंकों से गश्त की। ठाकुर देशराजसिंह को लोगों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर सेवर जेल भेज दिया गया। राजा मानसिंह का केंद्रीय मंत्री से विवाद भरतपुर में तिरंगा फहराने के लिए तत्कालीन केंद्रीय मंत्री नरहरि विष्णु (NV) गाडगिल हवाई जहाज से यहां आए थे। कई लोगों ने इसका विरोध किया। इतिहासकार महेंद्र सिंह सिकरवार ने बताया कि सर्किट हाउस में तब राजा मानसिंह की इस संबंध में एनवी गाडगिल से चर्चा भी हुई। उनका तर्क था कि मत्स्य राज्य की राजधानी अलवर है। ऐसे में भरतपुर में उद्घाटन करना और रियासतकालीन ध्वज उतारना गलत है। दोनों के बीच काफी बहस हुई। इसके बाद केंद्रीय मंत्री के इशारे पर मानसिंह को गिरफ्तार कर तिहाड़ जेल भेज दिया। साथ ही 6 माह के लिए भरतपुर प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। 'भरतपुर दुर्ग का ध्वज पहले की तरह ही लहराता रहेगा' इतना कुछ करने के बाद भी भरतपुर में लोगों का विरोध शांत नहीं हुआ तो दिल्ली मैसेज भेजा गया। रेडियो पर प्रसारण कराया गया कि तिरंगे के साथ भरतपुर दुर्ग का शाही ध्वज पहले की तरह ही हमेशा लहराता रहेगा। इसका भी कोई असर नहीं हुआ। इसके बाद महाराजा बृजेन्द्र सिंह को इस विरोध को शांत करने के लिए मनाया गया। उनकी सलाह से मत्स्य राज्य के मनोनीत राज्य प्रमुख और तत्कालीन धौलपुर नरेश महाराजा उदयभानु सिंह सेवर जेल गए। स्वतंत्रता सेनानी ठाकुर देशराज सिंह को छुड़ा कर बाहर लाए। देशराज सिंह ने जनसमूह को शांत किया। ठाकुर देशराज सिंह के सहयोग से किशोरी महल में भरतपुर के झंडे के साथ राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराया गया। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री नरहरि विष्णु गाडगिल ने मत्स्य राज्य का उद्घाटन किया। दूसरा किस्सा : राजपरिवार के झंडे काे लेकर सीएम से भिड़ गए थे राजा मानसिंह साल 1985 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने लगातार 7 बार से विधायक बन रहे राजा मानसिंह के खिलाफ पूर्व IAS को प्रत्याशी बनाकर उतारा था। 21 फरवरी 1985 को तत्कालीन CM शिवचरण माथुर कांग्रेस के प्रत्याशी के पक्ष में चुनावी सभा को संबोधित करने के लिए डीग पहुंचने वाले थे। इससे एक दिन पहले रात में कुछ कार्यकर्ताओं ने डीग महल पर लगे राजपरिवार के झंडे को उतारकर फाड़ दिया। इस बात का राजा मानसिंह को पता चला तो वो अपनी जीप लेकर सभा स्थल की ओर गए। रास्ते में CM के स्वागत के लिए बनाए द्वार और सभा के मंच को जीप की टक्कर से तोड़ दिया। इसके बाद वो उच्च माध्यमिक स्कूल में बनाए हेलिपेड पर पहुंचे और CM के हेलिकॉप्टर को जीप से टक्कर मारी। हालांकि तब CM माथुर हेलिकॉप्टर में नहीं थे। वहां खड़े गिनती के पुलिसकर्मियों में से किसी की भी राजा मानसिंह को रोकने और पकड़ने की हिम्मत नहीं हो पाई। बल्कि कुछ पुलिसवाले तो उन्हें सैल्यूट कर रहे थे। टूटे मंच से CM माथुर ने दिया था भाषण, बोले- ये गुंडागर्दी थी CM माथुर ने टूटे हुए मंच से ही भाषण दिया। राजा मान सिंह की इस हरकत को गुंडागर्दी बताया। CM पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों पर भी जमकर बरसे। उन्होंने उस समय के डीएसपी कानसिंह भाटी को फटकारा और हेलिकॉप्टर के बजाय कार में बैठकर सड़क मार्ग से धौलपुर चले गए। इधर, CM माथुर के जाने के तुरंत बाद से ही उनके हेलिकॉप्टर के पायलट ने डीग पुलिस थाने में राजा मानसिंह और उनके कुछ साथियों के खिलाफ CM माथुर पर जानलेवा हमले के तहत धारा 307 का मामला दर्ज कराया। अगली सुबह राजा मानसिंह काे पुलिस ने घेरकर मार डाला 22 फरवरी 1985 की सुबह राजा मानसिंह अपने दामाद विजय सिंह और कुछ साथियों के साथ जीप में पुलिस के सामने सरेंडर करने जा रहे थे। रास्ते में उन्हें रोककर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां बरसाईं। हमले में राजा मानसिंह, उनके दो साथी ठाकुर सुमेरसिंह और ठाकुर हरिसिंह की मौके पर ही मौत हो गई। वहीं, दामाद विजय सिंह लापता हो गए थे। देर रात विजय सिंह महल पहुंचे तो उन्होंने बताया था कि पुलिस ने उनकी जीप पर अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। वो हमले में बच गए थे। इसके बाद पुलिस ने राइफल के बट से उनके साथ बुरी तरह मारपीट की थी। वो जैसे-तैसे जान बचाकर निकले थे। अगले दिन मोती झील पैलेस के पास ही मानसिंह का शाही सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया था। सीएम ने आधी रात को दिया इस्तीफा राजा मान सिंह की तीन बेटियां ही थीं। ऐसे में अंतिम संस्कार की सारी रस्में भतीजे और पूर्व महाराजा बृजेंद्र सिंह के बेटे विश्वेंद्र सिंह ने निभाई थी। विश्वेंद्र सिंह अभी भरतपुर राजपरिवार के पूर्व सदस्य हैं। राजस्थान सरकार में मंत्री भी रहे हैं। राजा मानसिंह के अंतिम संस्कार में इलाके के हजारों लोगों के साथ कई विपक्षी नेता भी शामिल हुए थे। पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत और तत्कालीन लोकसभा चुनावों में नटवर सिंह के सामने चुनाव लड़ने वाली नलिनी सिंह भी अंतिम संस्कार में पहुंची थीं। इधर आधी रात में CM शिवचरण माथुर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर राजा मान सिंह की मौत की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए मंत्रिमंडल सहित इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी। अगले दिन सुबह उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और PM राजीव गांधी को अपना इस्तीफा भी भेज दिया था। इसे तुरंत स्वीकार कर लिया गया था। ---- रियासत कालीन झंडा लगाने की ये खबरें भी पढ़िए... भरतपुर मोतीमहल में थम गया झंडा विवाद:बेटे ने फहराया तिरंगा, विश्वेन्द्र भी बोले- ये सर्वोपरि, रियासती झंडे को लेकर अड़े समर्थक भी अब माने भरतपुर पूर्व राजपरिवार में चल रहा झंडा विवाद शनिवार दोपहर में पूरी तरह शांत हो गया है। नया विवाद मोती महल पर फहरा रहे झंडे को लेकर हुआ था। गुरुवार को इस झंडे को उतारकर तिरंगा फहरा दिया गया। पढ़ें पूरी खबर... भरतपुर में पूर्व राजपरिवार के महल में जबरन घुसे, रियासतकालीन झंडा लगाने की कोशिश भरतपुर के मोती महल का गेट रविवार देर रात SUV कार सवार 3 लोगों ने गाड़ी से तोड़ दिया। आरोप है कि ये तीनों गेट तोड़कर अंदर घुसे और मोती महल में रियासतकालीन झंडा लगाने का प्रयास किया। पढ़ें पूरी खबर...
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