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    Prabhasakshi NewsRoom: Islamic World का नेता बनना चाहता है Pakistan, मुस्लिम नेताओं को साथ लेकर Trump से मिलेंगे Shehbaz Sharif

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    संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) की 80वीं वार्षिक बैठक के इतर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ कुछ चुनिंदा मुस्लिम नेताओं के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ मुलाकात करेंगे। यह कोई सामान्य मुलाकात नहीं बल्कि एक गहरा कूटनीतिक अभियान है। दरअसल, यह उस दिशा की ओर संकेत है, जहाँ पाकिस्तान खुद को केवल दक्षिण एशियाई राजनीति तक सीमित नहीं रखकर व्यापक इस्लामी दुनिया का प्रतिनिधि बताना चाहता है। सवाल यह है कि क्या शहबाज शरीफ वास्तव में पाकिस्तान को मुस्लिम देशों का अगुआ सिद्ध करना चाहते हैं, या यह महज़ अमेरिकी शक्ति के करीब पहुँचने की एक रणनीति है?देखा जाये तो पाकिस्तान की स्थापना से लेकर आज तक उसका एक बुनियादी सपना रहा है— इस्लामी देशों की राजनीति में अग्रणी भूमिका निभाना। शहबाज शरीफ का मुस्लिम नेताओं के साथ ट्रंप से मिलना उसी आकांक्षा का विस्तार है। खासकर ऐसे समय में जब गाज़ा संकट ने वैश्विक स्तर पर मुस्लिम नेतृत्व की परीक्षा ले रखी है, तब शहबाज शरीफ यदि अमेरिकी राष्ट्रपति के सामने इस मुद्दे को प्रमुखता देते हैं, तो यह उन्हें मुस्लिम जनमानस में "आवाज़ उठाने वाला नेता" साबित करने में मदद कर सकता है। यह पाकिस्तान के लिए एक प्रतीकात्मक पूँजी होगी, जिसे वह इस्लामी देशों में अपनी साख बनाने के लिए भुनाना चाहेगा।इसे भी पढ़ें: Donald Trump and Elon Musk Met | सार्वजनिक विवाद के बाद ट्रंप-मस्क की मुलाकात, क्या अमेरिकी राजनीति में बदलेंगे समीकरण?दूसरी ओर, इस समय भारत और अमेरिका के रिश्ते तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। रूस से तेल खरीद पर अमेरिकी दबाव, उस पर लगाई गई पैनल्टी, भारतीय आईटी प्रतिभाओं के लिए महंगे होते एच-1बी वीज़ा शुल्क और व्यापारिक शुल्कों में वृद्धि ने दोनों देशों के बीच दूरी पैदा की है। ऐसे परिदृश्य में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का अमेरिकी राष्ट्रपति से घनिष्ठ संवाद स्थापित करना यह संदेश देता है कि वाशिंगटन नई दिल्ली की तुलना में इस्लामाबाद के प्रति अधिक लचीला है। यह भारत के लिए एक राजनयिक चिंता भी है, क्योंकि इससे पाकिस्तान को अमेरिकी राजनीतिक और आर्थिक सहयोग का द्वार खुला मिल सकता है।हम आपको यह भी बता दें कि जहाँ एक ओर पाकिस्तान अमेरिका के साथ नज़दीकी बढ़ाकर अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि सुधारने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर वह चीन से अपने रिश्तों को भी सहेजने में लगा है। शहबाज शरीफ ने हाल ही में सीपीईसी (चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) 2.0 की परियोजनाओं को लेकर स्पष्ट संदेश दिया कि इस बार किसी भी तरह की देरी या लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। उन्होंने अपने मंत्रालयों को सख्त चेतावनी दी कि चीन से हुए समझौतों को वास्तविक निवेश और संयुक्त उद्यम अनुबंधों में तब्दील करना ही होगा।देखा जाये तो पाकिस्तान की दोहरी रणनीति स्पष्ट है— अमेरिका से राजनीतिक और रणनीतिक समर्थन लेना, जबकि आर्थिक विकास के लिए चीन की पूँजी और विशेषज्ञता पर निर्भर रहना। पाकिस्तान जानता है कि अमेरिकी समर्थन उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के मुकाबले संतुलन दे सकता है, वहीं चीन उसके अवसंरचनात्मक विकास का असली इंजन है। शहबाज शरीफ का "सीपीईसी 2.0 में देरी न होने" का संदेश चीन को आश्वस्त करने के लिए है कि अमेरिका की ओर झुकाव का मतलब बीजिंग से दूरी नहीं है। भारत के लिए यह संकेत है कि पड़ोसी देश केवल सैन्य या वैचारिक प्रतिद्वंद्वी नहीं है बल्कि कूटनीतिक स्तर पर भी वह चुनौती पेश कर रहा है।बहरहाल, भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या पाकिस्तान सचमुच मुस्लिम नेतृत्व का केंद्र बन पाता है, या फिर यह केवल वाशिंगटन और बीजिंग के बीच झूलती उसकी विदेशी नीति की एक और कोशिश साबित होगी।
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