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    रामनगर रामलीला के दसवें दिन का भावपूर्ण प्रसंग:केवट भक्ति, निष्कपट प्रेम और श्रीराम का चित्रकूट आगमन, गूंजा जयकारा

    2 hours ago

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    रामनगर की ऐतिहासिक और भव्य रामलीला के दसवें दिन का मंचन अत्यंत भावुकता और भक्ति से परिपूर्ण रहा। आज की लीला का आरंभ हुआ निषादराज के आश्रम से, जहां मंत्री सुमंत श्रीराम को महाराज दशरथ का संदेश लेकर पहुंचते हैं। सुमंत जी विनती करते हैं कि यदि राम अयोध्या नहीं लौट सकते, तो माता सीता को ही वापस भेज दें। इस पर माता सीता अत्यंत श्रद्धा और दृढ़ता से कहती हैं कि वे श्रीराम के चरणों से कभी अलग नहीं होंगी। लक्ष्मण जी इस प्रसंग में क्रोध से भर उठते हैं और पिता के वचनों पर संदेह करते हैं, जिसे श्रीराम धैर्य और प्रेम से संभालते हैं। केवट प्रसंग से शुरू हुई लीला इसके बाद राम, सीता और लक्ष्मण गंगा तट पर पहुंचते हैं, जहां एक अत्यंत मधुर और हृदयस्पर्शी प्रसंग घटित होता है—केवट प्रसंग। भगवान श्रीराम, जो स्वयं भवसागर के तारक हैं, एक साधारण केवट के आग्रह को स्वीकार करते हैं और उसकी भक्ति के सामने झुकते हैं। केवट केवटाई छोड़ एक भक्त के रूप में सामने आता है, और प्रभु के चरण धोकर ही उन्हें अपनी नाव में बैठाता है। यह प्रसंग दर्शकों को यह सिखाता है कि भगवान अपने सच्चे भक्त की भावना को कितना मान देते हैं। केवट ने श्रीराम का पखारा पांव गंगा पार करने के बाद जब श्रीराम केवट को पारिश्रमिक देना चाहते हैं, तो केवट हाथ जोड़कर कहता है कि उसे आज तक की सारी मजूरी का फल मिल गया है—प्रभु के चरण धोने का सौभाग्य। यह संवाद दर्शकों के हृदय में गहराई तक उतर जाता है और रामभक्ति की शक्ति का अनुभव कराता है। आगे कथा बढ़ती है—माता सीता गंगा मैया की पूजा करती हैं और सभी रामभक्तगण भारद्वाज ऋषि के आश्रम की ओर प्रस्थान करते हैं। आश्रम में ऋषि भारद्वाज द्वारा प्रभु श्रीराम का स्वागत किया जाता है और वहां ज्ञान की गंगा बहती है। इसके बाद प्रभु चित्रकूट की ओर प्रस्थान करते हैं और यमुना पार करते हैं। निषादराज यहीं तक साथ आते हैं और भावुक विदाई होती है। अब जानिए चित्रकूट का प्रसंग चित्रकूट मार्ग में वनवासी ग्रामवासी प्रभु के दर्शन कर आनंद से भावविभोर हो उठते हैं। महिलाएं माता सीता से पूछती हैं कि ये दोनों सुंदर पुरुष कौन हैं। कोई महाराज दशरथ को दोष देता है, कोई केकई को और कोई विधाता को। यह प्रसंग ग्रामीण जनों की रामभक्ति और भावनाओं को दर्शाता है। फिर श्रीराम महर्षि वाल्मीकि के आश्रम पहुंचते हैं, जहां अत्यंत मार्मिक संवाद होता है। जब श्रीराम महर्षि से पूछते हैं कि वे कहां निवास करें, तो वाल्मीकि कहते हैं कि वे उन हृदयों में वास करें जहाँ रामकथा की गंगा बहती है और जो कभी तृप्त नहीं होते। यह संवाद श्रोताओं को भीतर तक छू जाता है और रामकथा की महिमा को दर्शाता है। अंततः महर्षि वाल्मीकि मंदाकिनी के तट पर चित्रकूट में निवास का आग्रह करते हैं। श्रीराम वहीं कुटिया बनाकर निवास करते हैं, जहां देवता, कोल, भील सेवा में लगे रहते हैं। इस दिव्य प्रसंग के साथ आज की लीला का समापन हुआ। लीला के अंत में किसी संत द्वारा आरती की गई, और सम्पूर्ण वातावरण रामनाम से गूंज उठा।
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