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    डंडा लेकर किसानों ने घेरा लखनऊ DM ऑफिस:बैलगाड़ी पर सवार होकर जोरदार प्रदर्शन, बोले- LDA ने श्मशान स्थल पर कब्जा किया

    5 hours ago

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    लखनऊ में भारतीय किसान यूनियन राष्ट्रीयवाद ने आज जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। बैलगाड़ी और हाथों में डंडा लेकर नारेबाजी करते हुए बड़ी संख्या में किसान कैसरबाग चौराहे से जिला अधिकारी कार्यालय पहुंचे। जिला अधिकारी कार्यालय का घेराव करने के बाद पंचायत की। लखनऊ विकास प्राधिकरण पर श्मशान स्थल कब्जा करने का आरोप लगाया। गोमती नगर स्थित उजरियांव योजना में मुआवजा समेत 13 सूत्रीय मांग उठाई। मांगे पूरी न होने पर आरपार की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया। 'LDA नहीं दे रहा मुआवजा' प्रदर्शन में शामिल किसान अशोक यादव ने कहा 40 वर्ष पूर्व 1984 में हमारी जमीन लखनऊ विकास प्राधिकरण द्वारा अधिकृत कर ली गई थी। उस समय 84 पैसे के हिसाब से मुआवजा तय हुआ। हम लोगों ने फिर वार्ता की, तो मुआवजा 2.5 रुपए हुआ। कुछ लोग कोर्ट चले गए इसके बाद 4 रुपए 60 पैसे दर के हिसाब से तय हुआ। 2016 में अंतिम मोहर कोर्ट के द्वारा लगी की 4 रुपए 60 पैसे सभी किसानों को दिया जाए। उन्होंने कहा कि LDA कह रहा है कि हमारे पास पर्याप्त धनराशि नहीं है, इसलिए हम मुआवजा नहीं दे पाएंगे। LDA ने जमीन अधिकृत करते समय विभिन्न प्रकार की सुविधा देने की बात कही थी, जिसमें प्रत्येक परिवार को नौकरी, आवास, गांव का विकास और किसान भवन समेत तमाम चीजें शामिल थीं। किसानों को इनमें से कुछ नहीं मिला है। 'महिलाएं दूसरों के घरों में झाड़ू पोंछा करने को मजबूर' किसानों ने कहा कि LDA ने हमारे श्मशान स्थल पर कब्जा कर लिया है। 3 श्मशान स्थल थे, जिसमें से सिर्फ एक ही बचा है। किसान परिवारों की औरतें आज लोगों के घरों में झाड़ू पोंछा करने पर मजबूर हैं। किसान प्रधान देश में अन्नदाता की यह स्थिति हो गई है कि दो वक्त की रोटी के लिए तरस रहे हैं। भूमि अधिग्रहण करते समय जो वादा किया था एक भी पूरा नहीं हुआ। लखनऊ विकास प्राधिकरण और सरकार के बीच में किसान पिस रहा है। अशोक ने कहा कि कई सालों से लखनऊ विकास प्राधिकरण के आला अधिकारियों से गुहार लगा रहे हैं, मगर सुनवाई नहीं हो रही है। सारी चीज हमारे पास लिखित में मौजूद है। प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने कहा कि दौड़ते-दौड़ते हम लोग परेशान हो गए हैं। शारीरिक रूप से कमजोर हो गए हैं। ना दिखाई पड़ता है। ना चल पाते हैं। मजबूर होकर कभी एलडीए जाते हैं, कभी जिलाधिकारी के यहां आते हैं, मगर कोई भी हमारी बात नहीं सुनता है।
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