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    झुक गया अमेरिका, भारतीय कृषि और डेयरी बाजारों में पहुँच की माँग छोड़ी! अब कह रहा है- बस हमारा Cheese और Corn खरीद लो

    3 hours from now

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    भारत और अमेरिका के बीच ठंडी पड़ी व्यापार वार्ता एक बार फिर पटरी पर लौट आई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारी टैरिफ लगाने और वार्ता को निलंबित करने के कुछ ही हफ्तों बाद, वाशिंगटन से एक प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली पहुंचा है ताकि बातचीत को पुनः शुरू किया जा सके। यह वार्ता सकारात्मक माहौल में शुरू भी हो चुकी है। बताया जा रहा है कि इस बार अमेरिका कुछ रियायतों के साथ आया है। अमेरिकी टीम अब भारत के विशाल कृषि और डेयरी बाजारों में व्यापक पहुंच की मांग नहीं कर रही। इसकी बजाय वह केवल भारत से अमेरिकी चीज़ (cheese) और मक्का (corn) खरीदने की अपेक्षा कर रही है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उनका लक्ष्य भारत के संवेदनशील छोटे डेयरी किसानों से प्रतिस्पर्धा करना नहीं है, बल्कि उच्च श्रेणी के उत्पादों- जैसे प्रीमियम चीज़ को बेचने पर केंद्रित है।हालाँकि, अमेरिका की मक्का निर्यात योजना में अड़चनें हैं, क्योंकि उसका अधिकांश कॉर्न जेनिटिकली मॉडिफाइड (GM) है, जिसकी अनुमति भारत न तो आयात में देता है और न ही घरेलू स्तर पर खेती में। इसके अलावा, बिहार जैसे राज्यों में चुनावी परिदृश्य को देखते हुए इस पर राजनीतिक विरोध की संभावना भी है।विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की यह ‘झुकाव वाली’ नीति उसके घरेलू कृषि संकट की देन है। चीन के साथ चल रहे व्यापार युद्ध ने अमेरिकी किसानों को गहरे आर्थिक नुकसान में डाल दिया है। चीन, जो अमेरिका का सबसे बड़ा खरीदार था, अब ब्राज़ील जैसे विकल्पों की ओर रुख कर चुका है। ऐसे में अमेरिकी गोदाम बिना बिके सोयाबीन और कॉर्न से भर गए हैं। यही कारण है कि ट्रंप प्रशासन अब भारत जैसे बड़े बाज़ार के साथ समझौते की ओर लचीलापन दिखा रहा है।उधर, नई दिल्ली में शुरू हुई वार्ता को विशेषज्ञों ने एक लंबी खींचतान करार दिया है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) का कहना है कि जब तक अमेरिका अतिरिक्त शुल्क, विशेषकर रूस से तेल आयात पर लगाई गई 25% ड्यूटी को वापस नहीं लेता, तब तक कोई बड़ा ब्रेकथ्रू संभव नहीं है।दूसरी ओर, देखा जाये तो भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का पुनः आरंभ होना केवल आर्थिक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह इस तथ्य का प्रमाण है कि वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति कितनी मज़बूत हो चुकी है कि आज अमेरिका को बातचीत के लिए झुकना पड़ा है।ट्रंप प्रशासन की शुरुआती आक्रामक टैरिफ नीति वास्तव में अमेरिका के लिए ही उलटी साबित हुई। चीन के साथ चल रहे व्यापार युद्ध ने अमेरिकी किसानों की कमर तोड़ दी है। ऐसे में भारत जैसा बड़ा और संभावनाओं से भरा बाजार अमेरिका के लिए अपरिहार्य बन गया है। यही कारण है कि पहले जो अमेरिका भारत से डेयरी और कृषि बाजार खोलने की मांग कर रहा था, वह अब प्रीमियम चीज़ और मक्का जैसे सीमित उत्पादों पर आकर अटक गया है।इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत ने इस पूरे घटनाक्रम में एक रणनीतिक धैर्य का परिचय दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने न तो अमेरिकी दबाव के आगे झुकने का संदेश दिया और न ही अनावश्यक टकराव की राह अपनाई। “स्वदेशी” और किसानों के साथ खड़े रहने का उनका संदेश देश के भीतर सशक्त राजनीतिक संकेत था, जबकि वैश्विक मंच पर इससे यह स्पष्ट हुआ कि भारत अमेरिकी दबाव के आगे अपने हितों से समझौता नहीं करेगा।फिर भी, सावधानी की आवश्यकता है। अमेरिका की ओर से दिखाई जा रही यह लचीलापन स्थायी नहीं, बल्कि परिस्थितिजन्य है। जैसे ही उसके किसान संकट से बाहर आएंगे या चीन के साथ समीकरण बदलेगा, वह फिर से सख्ती की राह पकड़ सकता है। इसके अलावा, जीएम कॉर्न जैसे मुद्दे भारत के लिए घरेलू राजनीति में संवेदनशील बने रहेंगे।बहरहाल, भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता का यह नया चरण एक अवसर है, लेकिन यह आसान नहीं होगा। भारत को दीर्घकालिक तैयारी के साथ आगे बढ़ना होगा और अपने किसानों, घरेलू उद्योग और उपभोक्ताओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी। अमेरिका चाहे कितनी भी ‘चीज़ी’ पेशकश करे, भारत को यह ध्यान रखना होगा कि कोई भी समझौता उसकी संप्रभुता और आत्मनिर्भरता की बुनियाद को कमजोर न करे।
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