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    नवरात्रि के दूसरे दिन भगवती ब्रह्मचारिणी का दर्शन:मां को पंचमेवा का लगा भोग, महंत बोले- पढ़ाई में कमजोर बच्चों को मिलती है सफलता

    4 hours ago

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    नवरात्रि का आज दूसरा दिन हैं। वाराणसी के दुर्गा घाट स्थित माता भगवती ब्रह्मचारिणी देवी के प्राचीन मंदिर में भक्तों का तांता लगा हुआ है। पूरा मंदिर मां शेरावाली के जयकारों से गूंज रहा है। भक्त अपनी मनोकामना लेकर मां के दरबार आए हैं। लंबी कतारों में लगकर माता ब्रह्मचारिणी के दर्शन का इंतजार कर रहे हैं। पहले देखें तस्वीर... पढ़ने में कमजोर बच्चे करें आराधना मंदिर के महंत ने कहा - नवरात्रि के दूसरे दिन माता ब्रह्मचारिणी के दर्शन का विधान है। भगवती ब्रह्मचारिणी दुर्गा शक्ति के उपासना से आज विशेष फायदा होगा। जो भी बच्चा पढ़ने में कमजोर है। वो भगवती ब्रह्मचारिणी की रोज आराधना करे, समस्या दूर होगी। मंत्र का जप करे, भगवती कल्याण करेंगी। नंबर अच्छे आएंगे। सर्विस अच्छी लग जाएगी। भगवती की कृपा से इंसान स्वस्थ, सुंदर और खुश भी रहता है। नौ दुर्गा को बाबा विश्वनाथ की ओर से भेजी जाएंगी शृंगार की सामग्रियां मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्वभूषण मिश्र ने बताया कि नवाचार के तहत पिछले साल नवरात्र से भगवान विश्वेश्वर की ओर से नवरात्र में नव देवियों को शृंगार सामग्री भेजी जा रही है। इस बार 10 महाविद्याओं की देवियों को भी शृंगार की सामग्रियां भेजी जाएंगी। नवरात्र शिवशक्ति का ही उत्सव है। शारदीय नवरात्र में पूजी जाने वालीं माता शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कूष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी, मां सिद्धिदात्री सहित नव गौरी मंदिरों में शृंगार की सामग्री जाएगी। 10 महाविद्याओं की देवियों काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका हैं। उन्होंने बताया कि नवरात्रभर विश्वनाथ मंदिर धाम में मौजूद देवियों की विधिवत पूजा होगी। नवरात्रि के अगले 7 दिन, काशी के इन मंदिरों में होंगे माता के शेष 7 अवतारों के दर्शन-पूजन..... तीसरे दिन मां चंद्रघंटा देवी की पूजा होगी। चंद्रघंटा को रणचंडी, चंद्रखंडी और चंडिका के नाम से भी जानते हैं। चौक क्षेत्र के चंद्रघंटा गली में स्थित प्राचीन चंद्रघंटा मंदिर है। उनके माथे पर बने अर्द्धचंद्र में बुराई को नष्ट करने वाली शक्ति है। साहस, संकल्प, धार्मिकता और निर्भयता का प्रतिनिधित्व करती हैं। नवरात्रि का चौथा दिन कुष्मांडा देवी के नाम है। इन्हें ही अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है। वाराणसी में सुप्रसिद्ध दुर्गाकुंड मंदिर में ही कुष्मांडा की पूजा की जाती है। माता का मंदिर वाराणसी सहित मिर्जापुर में भी है। ब्रह्मांड निर्माता, धन, उत्कृष्ट शक्ति, स्वास्थ्य, तेज और भाग्य की देवी हैं। देवी कुष्मांडा का संबंध पीले रंग से है, जो कि चमक और महिमा का प्रतीक है। नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा का विधान है। वाराणसी के चौक स्थित संकठा गली में मंदिर है। माता ने भगवान स्कंद को जन्म दिया, जिन्हें कार्तिकेय महराज के नाम से भी जाना जाता है। माता अपने बच्चों को बुराई और राक्षसों से बचाती हैं। इन्होंने कार्तिकेय को राक्षस तारकासुर को हराने में सक्षम बनाया था। नवरात्रि के छठवें दिन माता कात्यायनी देवी की पूजा होगी। काशी में यह मंदिर सिंधिया घाट पर है। माता जीवन के बाधाओं को दूर करने वाली हैं। इन्होंने महिषासुर पर विजय प्राप्त किया था। नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि देवी को समर्पित है। इन्हें चामुंडा देवी भी कहते हैं। राक्षस चंड और मुंड दोनों को इन्होंने हराया था। बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ गली में कालिका गली पर यह प्राचीन मंदिर कालरात्रि को समर्पित है। इन्हें मुकुट चक्र देवी के रूप में लोग पूजते हैं। माता महा गौरी देवी की पूजा नवरात्रि के आठवें दिन होती है। इन्हें श्वेतांबरधरा भी कहा जाता है। विश्वनाथ गली के लाहोरी टोला में यह प्राचीन मंदिर स्थित है। माता अपने भक्तों को जीविका, शक्ति, सद्भाव और मातृत्व का संदेश देती हैं। नवरात्रि का अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री देवी के रूप जाना जाता है। इनका दूसरा नाम सरस्वती भी है। मैदागिन स्थित गोलघर में माता सिद्धिदात्री का प्राचीन मंदिर है। आध्यात्मिक और एकाग्रता क्षमताओं से लैस देवी हैं। इनकी पूजा से मानसिक स्थिरता और जीवन में शांति बनी रहती है।
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